मीराबाई के सुबोध पद प्रार्थना


1.राग धुनपीलू


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हरि बिन कूण गती मेरी। तुम मेरे प्रतिपाल कहिये मैं रावरी चेरी।। आदि अंत निज नाँव तेरो हीयामें फेरी। बेर बेर पुकार कहूं प्रभु आरति है तेरी।। यौ संसार बिकार सागर बीच में घेरी। नाव फाटी प्रभु पाल बाँधो बूड़त है बेरी।। बिरहणि पिवकी बाट जोवै राखल्यो नेरी। दासि मीरा राम रटत है मैं सरण हूं तेरी।।1।।

शब्दार्थ /अर्थ :- कूण = कौन क्या। हीयामें फेरी = हृदय में याद करती रहती हूं। आरति =उत्कण्ठा, चाह। यौ = यह। पाल बांधो = पाल तान लो। बेरी =नाव का बेड़ा। नेरी =निकट।

2. राग सहाना


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मीरा को प्रभु साँची दासी बनाओ। झूठे धंधों से मेरा फंदा छुड़ाओ।। लूटे ही लेत विवेक का डेरा। बुधि बल यदपि करूं बहुतेरा।। हाय!हाय! नहिं कछु बस मेरा।मरत हूं बिबस प्रभु धाओ सवेरा।। धर्म उपदेश नितप्रति सुनती हूं। मन कुचाल से भी डरती हूं।। सदा साधु-सेवा करती हूं। सुमिरण ध्यान में चित धरती हूं।। भक्ति-मारग दासी को दिखलाओ। मीरा को प्रभु सांची दासी बनाओ।। शब्दार्थ /अर्थ :- विवेक =सत्य और असत्य का निर्णय। डेरा = स्थान। सवेरा =शीघ्र, जल्दी।

3. राग सारंग


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सुण लीजो बिनती मोरी, मैं शरण गही प्रभु तेरी। तुम (तो) पतित अनेक उधारे, भवसागर से तारे।। मैं सबका तो नाम न जानूं, कोई कोई नाम उचारे। अम्बरीष सुदामा नामा, तुम पहुंचाये निज धामा।। ध्रुव जो पांच वर्ष के बालक, तुम दरस दिये घनस्यामा।। धना भक्त का खेत जमाया, कबिरा का बैल चराया।। सबरी का जूंठा फल खाया, तुम काज किये मनभाया। सदना औ सेना नाई को तुम कीन्हा अपनाई।। करमा की खिचड़ी खाई, तुम गणिका पार लगाई। मीरां प्रभु तुरे रंगराती या जानत सब दुनियाई।।3।।

शब्दार्थ /अर्थ :- सुण लीजो = सुन लीजिए। नामा = महाराष्ट्र के भक्त नामदेव। कबिरा का बैल चराया = कबीरदास के बैल को चराने ले गये। भाया =प्रिय, पसंद। करमा =करमा बाई, जो भगवान जगन्नाथ की भक्त थी। यह खिचड़ी का भोग लगाया करती थी। आज भी पुरी में जगन्नाथजी के प्रसाद में खिचड़ी दी जाती है।

4. राग आसाबरी


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प्यारे दरसन दीज्यो आय, तुम बिन रह्यो न जाय।। जल बिन कमल, चंद बिन रजनी। ऐसे तुम देख्यां बिन सजनी।। आकुल व्याकुल फिरूं रैन दिन, बिरह कलेजो खाय।। दिवस न भूख, नींद नहिं रैना, मुख सूं कथत न आवै बैना।। कहा कहूं कछु कहत न आवै, मिलकर तपत बुझाय।। क्यूं तरसावो अंतरजामी, आय मिलो किरपाकर स्वामी।। मीरां दासी जनम जनम की, पड़ी तुम्हारे पाय।।

4।। शब्दार्थ /अर्थ :- रजनी =रात्रि। सजनी =दासी। कलेजो खाय = बिरह कलेजे को मरण जैसी पीड़ा पहुंचा रहा है। बैना = बचन। पाय =चरण।

5. राग रामकली


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अब तो निभायाँ सरेगी, बांह गहेकी लाज। समरथ सरण तुम्हारी सइयां, सरब सुधारण काज।। भवसागर संसार अपरबल, जामें तुम हो झयाज। निरधारां आधार जगत गुरु तुम बिन होय अकाज।। जुग जुग भीर हरी भगतन की, दीनी मोच्छ समाज। मीरां सरण गही चरणन की, लाज रखो महाराज।।5।।

शब्दार्थ /अर्थ :- निभायां =निबाहने से ही। सरेगी =बनेगी। अपरबल =प्रबल, अपार। झयाज = जहाज,आश्रय। निरधारां =निराधारों, असहायों।

6. राग सूहा


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स्वामी सब संसार के हो सांचे श्रीभगवान। स्थावर जंगम पावक पाणी धरती बीज समान।। सब में महिमा थांरी देखी कुदरत के करबान। बिप्र सुदामा को दालद खोयो बाले की पहचान।। दो मुट्ठी तंदुल कि चाबी दीन्ह्यों द्रव्य महान। भारत में अर्जुन के आगे आप भया रथवान।। अर्जुन कुलका लोग निहार््या छुट गया तीरकमान। ना कोई मारे ना कोई मरतो, तेरो यो अग्यान। चेतन जीव तो अजर अमर है, यो गीतारो ग्यान।। मेरे पर प्रभु किरपा कीजो, बांदी अपणी जान। मीरां के प्रभु गिरधर नागर चरण कंवल में ध्यान।।

6।। शब्दार्थ /अर्थ :- थांरी =तुम्हारी। करबान = चमत्कार। दालद =दरिद्रता। बालेकी =बचपन की। तंदुल =चावल। कुलका =अपने ही कुटुम्ब का। निहार््या = देखा। गीतारो =गीता का। बांदी = दासी। : बिरह : ------------

7. राग प्रभाती


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राम मिलण रो घणो उमावो, नित उठ जोऊं बाटड़ियाँ। दरस बिना मोहि कछु न सुहावै, जक न पड़त है आँखड़ियाँ।। तड़फत तड़फत बहु दिन बीते, पड़ी बिरह की फांसड़ियाँ। अब तो बेग दया कर प्यारा, मैं छूं थारी दासड़ियाँ।। नैण दुखी दरसणकूं तरसैं, नाभि न बैठें सांसड़ियाँ। रात-दिवस हिय आरत मेरो, कब हरि राखै पासड़ियाँ।। लगी लगन छूटणकी नाहीं, अब क्यूं कीजै आँटड़ियाँ। मीरा के प्रभु कब र मिलोगे, पूरो मनकी आसड़ियाँ।।7।।

शब्दार्थ /अर्थ :- घणी =घनी, बहुत अधिक। उमाव = उमंग। बाटड़ियाँ = बाट, राह। जक =चैन। फाँसड़ियाँ = फांसी। साँसड़ियाँ =सांसें। पासड़ियाँ =समीप। आँटड़ियाँ =आपत्ति, बाधा। आसड़ियाँ = आशाएँ।

8. राग जैजैवंती


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गली तो चारों बंद हुई, मैं हरिसे मिलूं कैसे जाय। ऊंची नीची राह लपटीली, पांव नहीं ठहराय। सोच सोच पग धरूं जतनसे, बार बार डिग जाय।। ऊंचा नीचा महल पियाका म्हांसूं चढ़््यो न जाय। पिया दूर पंथ म्हारो झीणो, सुरत झकोला खाय।। कोस कोस पर पहरा बैठ्या, पैंड़ पैंड़ बटमार। है बिधना, कैसी रच दीनी दूर बसायो म्हांरो गांव।। मीरा के प्रभु गिरधर नागर सतगुरु दई बताय। जुगन जुगन से बिछड़ी मीरा घर में लीनी लाय।।8।।

शब्दार्थ /अर्थ :- लपटीली =रपटीली। म्हांरौ =मेरा। झीणो =सूक्ष्म। सुरत =याद करने की शक्ति। झकोला =झोंका। पैंड़ =डग। गाम =गांव।

9. राग भांड


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नातो नामको जी म्हांसूं तनक न तोड्यो जाय।। पानां ज्यूं पीली पड़ी रे, लोग कहैं पिंड रोग। छाने लांघण म्हैं किया रे, राम मिलण के जोग।। बाबल बैद बुलाइया रे, पकड़ दिखाई म्हांरी बांह। मूरख बैद मरम नहिं जाणे, कसक कलेजे मांह।। जा बैदां, घर आपणे रे, म्हांरो नांव न लेय। मैं तो दाझी बिरहकी रे, तू काहेकूं दारू देय।। मांस गल गल छीजिया रे, करक रह्या गल आहि। आंगलिया री मूदड़ी (म्हारे) आवण लागी बांहि।। रह रह पापी पपीहडा रे,पिवको नाम न लेय। जै कोई बिरहण साम्हले तो, पिव कारण जिव देय।। खिण मंदिर खिण आंगणे रे, खिण खिण ठाड़ी होय। घायल ज्यूं घूमूं खड़ी, म्हारी बिथा न बूझै कोय।। काढ़ कलेजो मैं धरू रे, कागा तू ले जाय। ज्यां देसां म्हारो पिव बसै रे, वे देखै तू खाय।। म्हांरे नातो नांवको रे, और न नातो कोय। मीरा ब्याकुल बिरहणी रे, (हरि) दरसण दीजो मोय।।9।।

शब्दार्थ /अर्थ :- मोसूं =मुझको। पानां ज्यूं = पत्तों की भांति। पिंडरोग =पाण्डु रोग इस रोग में रोगी बिलकुल पीला पड़ जाता है। छाने = छिपकर। लांघण =लंघन,उपवास। बाबल = बाबा, पिता। करक = पीड़ा। दाझी = जली हुई। छीज्या =क्षीण हो गया। मूंदड़ो =मुंदरी, अंगूठी। बांहीं =भुजा। साम्हले =सुन पायेगी। खिण =क्षण भर। देसां =देशों में। खाई =खा लेना।

10. राग कामोद


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आली रे, मेरे नैणां बाण पड़ी।। चित्त चढ़ी मेरे माधुरी मूरत, उर बिच आन अड़ी। कबकी ठाड़ी पंथ निहारूं, अपने भवन खड़ी।। कैसे प्राण पिया बिनुं राखूं, जीवनमूल जड़ी। मीरा गिरधर हाथ बिकानी, लोग कहैं बिगड़ी।।10।।

शब्दार्थ /अर्थ :- नैणा =नयनों में, आंखों में। बाण =आदत। आन अड़ी =आकर अड़ गई अर्थात समा गई। जीवनमूल = संजीवनी बूटी।

11. राग बिहाग


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माई म्हारी हरिजी न बूझी बात। पिंड मांसूं प्राण पापी निकस क्यूं नहीं जात।। पट न खोल्या मुखां न बोल्या, सांझ भई परभात। अबोलणा जु बीतण लागो, तो काहे की कुशलात।। सावण आवण होय रह्यो रे, नहीं आवण की बात। रैण अंधेरी बीज चमंकै, तारा गिणत निसि जात।। सुपन में हरि दरस दीन्हों, मैं न जान्यूं हरि जात। नैण म्हारा उघण आया, रही मन पछतात।। लेइ कटारी कंठ चीरूं, करूंगी अपघात। मीरा व्याकुल बिरहणी रे, काल ज्यूं बिललात।।11।।

शब्दार्थ /अर्थ :- बूझी बात = बात न पूछी, ध्यान न दिया। पिंड मांसूं = शरीर में से। मुखां न बोल्या = मुंह से बात तक नहीं की। अबोलणा =बिना बोले,चुप साधे सावण =सावन का महीना। बीज =बिजली। हरिजात =हरि आकर चले गये। ऊघण आया =ऊंघने लगा, झपकी आ गयी। बिललात =व्याकुल होना,चिल्लाना।

12. राग देश बिलंपत


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दरस बिनु दूखण लागे नैन। जबसे तुम बिछुड़े प्रभु मोरे, कबहुं न पायो चैन।। सबद सुणत मेरी छतियां कांपे, मीठे लागे बैन। बिरह कथा कांसूं कहूं सजनी, बह गई करवत ऐन।। कल न परत पल हरि मग जोवत, भई छमासी रैन। मीरा के प्रभू कब र मिलोगे, दुखमेटण सुखदैन।।12।।

शब्दार्थ /अर्थ :- सुणत =याद आते ही। बहगई करवत =जैसे आरी चल गई। मेटण = मेटनेवाले। दैण =देनेवाले।

13. राग धानी


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सांवरा म्हारी प्रीत निभाज्यो जी।। थे छो म्हारा गुण रा सागर, औगण म्हारूं मति जाज्यो जी। लोकन धीजै (म्हारो) मन न पतीजै, मुखडारा सबद सुणाज्यो जी।। मैं तो दासी जनम जनम की, म्हारे आंगणा रमता आज्यो जी। मीरा के प्रभु गिरधर नागर, बेड़ो पार लगाज्यो जी।।13।।

शब्दार्थ /अर्थ :- निभाज्यो =निभा लेना। थे छौ =तुम हो। औगण =अवगुण, दोष, भूलें। जाज्यो = जानना, मन में लाना। पतीजै =विश्वासकरना। मुखडारा =मुख का। रमता आज्यो =विहार करते हुए आना।

14. राग दरबारी


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प्रभुजी थे कहां गया नेहड़ो लगाय। छोड़ गया बिस्वास संगाती प्रेमकी बाती बलाय।। बिरह समंद में छोड़ गया छो, नेहकी नाव चलाय। मीरा के प्रभु कब र मिलोगे, तुम बिन रह्यो न जाय।।14।।

शब्दार्थ /अर्थ :- थे =तू। नेहड़ो = प्रेम। बाती बलाय =आग लगाकर। समंद =समुद्र। छो = हो। कब र = अरे, कब।

15. राग सारंग


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है मेरो मनमोहना, आयो नहीं सखी री।। कैं कहुं काज किया संतन का, कै कहुं गैल भुलावना।। कहा करूं कित जाऊं मेरी सजनी, लाग्यो है बिरह सतावना।। मीरा दासी दरसण प्यासी, हरिचरणां चित लावना।।15।।

शब्दार्थ :-काज =काम। गैल = रास्ता। लावना =लगाना है।

16. राग बागेश्री


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मैं बिरहणि बैठी जागूं जगत सब सोवे री आली।। बिरहणी बैठी रंगमहल में, मोतियन की लड़ पोवै।। इक बिहरणि हम ऐसी देखी, अंसुवन की माला पोवै।। तारा गिण गिण रैण बिहानी , सुख की घड़ी कब आवै। मीरा के प्रभु गिरधर नागर, जब मोहि दरस दिखावै।।16।।

शब्दार्थ /अर्थ :- बिरहणी =विरहनी। पोवै =गूंथती है। रैण =रात। बिहानी = बीत गयी।

17. राग दरबारी कान्हरा


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पिय बिन सूनो छै जी म्हारो देस।। ऐसो है कोई पिवकूं मिलावै, तन मन करूं सब पेस। तेरे कारण बन बन डोलूं, कर जोगण को भेस।। अवधि बदीती अजहूं न आए, पंडर हो गया केस। मीरा के प्रभु कब र मिलोगे, तज दियो नगर नरेस।।17।।

शब्दार्थ /अर्थ :- सूनो = सूना। छै =है। म्हारो देस = मेरा देश अर्थात् जीवन। पेस -समर्पण। बदीती =बीत गई। पंडर = सफेद। नगर नरेस = अपने राजा का राज्य

18. राग कोसी कान्हरा


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कोई कहियौ रे प्रभु आवन की, आवन की मनभावन की।। आप न आवै लिखि नहीं भेजै, बाण पड़ी ललचावन की। ए दोउ नैण कह्यौ नहीं मानै, नदियां बहै जैसे सावन की।। कहा करूं कछु नहीं बस मेरो, पांख नहीं उड़ जावन की। मीरा कहै प्रभु कब र मिलोगे, चेरी भई हूं तेरे दांवन की।।18।।

शब्दार्थ /अर्थ :- कहियौ रे = आकर संदेशा दे। दांवन = दामन, का पल्ला।

19. राग पूरिया कल्याण


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साजन, सुध ज्यूं जाणो लीजै हो। तुम बिन मोरे और न कोई, क्रिपा रावरी कीजै हो।। दिन नहीं भूख रैण नहीं निंदरा, यूं तन पल पल छीजै हो। मीरा के प्रभु गिरधर नागर , मिल बिछड़न मत कीजै हो।।19।।

शब्दार्थ /अर्थ :- साजन =प्रियतम। रावरी =तुम्हारी। निंदरा =नींद। बिछड़न =वियोग।

20. राग गौंड मलार


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बादल देख डरी हो, स्याम, मैं बादल देख डरी।। काली पीली घटा ऊमड़ी, बरस्यो एक घरी। जित जाऊं तित पाणी पाणी, हुई हुई भोम हरी।। जाका पिय परदेस बसत है, भीजूं बहार खरी। मीरा के प्रभु हरि अविनासी कीजो प्रीत खरी।।20।।

शब्दार्थ :-भोम =भूमि, धरती। बहार खरी =बाहर खड़ी हुई। खरी = सच्ची।

21. राग सूरदासी मलार


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बरसै बदरिया सावन की, सावन की मनभावनकी।। सावन में उमग्यो मेरो मनवा, भनक सुनी हरि आवनकी। उमड़ घुमड़ चहुं दिसिसे आयो, दामण दमकै झर लावनकी।। नान्हीं -नान्हीं बूंदन मेहा बरसै, सीतल पवन सोहावनकी। मीरा के प्रभु गिरधर नागर, आनंद मंगल गावनकी।।21।।

शब्दार्थ :-उमग्यो = उमंग में आ गया। भनक = धुन। दामन =दामिनी, बिजली। झर =झड़ी।

22. राग शुद्ध सारंग


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हरि बिन ना सरै री माई। मेरा प्राण निकस्या जात, हरी बिन ना सरै माई। मीन दादुर बसत जल में, जल से उपजाई।। तनक जल से बाहर कीना तुरत मर जाई। कान लकरी बन परी काठ धुन खाई। ले अगन प्रभु डार आये भसम हो जाई।। बन बन ढूंढत मैं फिरी माई सुधि नहिं पाई। एक बेर दरसण दीजे सब कसर मिटि जाई।। पात ज्यों पीली पड़ी अरु बिपत तन छाई। दासि मीरा लाल गिरधर मिल्या सुख छाई।।22।।

शब्दार्थ /अर्थ :- सरै =चलता है, पूरा होता है। दादुर =मेंढक। लकरी =लकड़ी। अगन =अग्नि, आग। पात =पत्ता। सुख छाई = आनन्द छा गया।

23. राग टोडी


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आओ मनमोहना जी जोऊं थांरी बाट। खान पान मोहि नैक न भावै नैणन लगे कपाट।। तुम आयां बिन सुख नहिं मेरे दिल में बहोत उचाट। मीरा कहै मैं बई रावरी, छांड़ो नाहिं निराट।।23।।

शब्दार्थ /अर्थ :- जोऊं थारी बाट = तेरी राह देखती हूं। आयां बिनि =बिना आये। उचाट =बेचैनी। निराट = असहाय।

24. राग पीलू


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राम मिलण के काज सखी, मेरे आरति उर में जागी री।। तड़फत तड़फत कल न परत है, बिरहबाण उर लागी री। निसदिन पंथ निहारूं पिव को, पलक न पल भरि लागी री।। पीव पीव मैं रटूं रात दिन, दूजी सुध बुध भागी री। बिरह भुजंग मेरो डस्यो है कलेजो, लहर हलाहल जागी री।। मेरी आरति मैटि गोसाईं, आय मिलौ मोहि सागी री। मीरा व्याकुल अति उकलाणी, पिया की उमंग अति लागी री।।24।।

शब्दार्थ /अर्थ :- मिलण =मिलना। आरति =अत्यन्त पीड़ा। जागी =पैदा हुई। पलक न पलभरि = एक पल के लिए भी नींद नहीं आयी। भुजंग = सांप। लहर =लहरें।उकलाणी =व्याकुल हो गई। उमंग =चाह।

25. राग भीमपलासी


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गोबिन्द कबहुं मिलै पिया मेरा।। चरण कंवल को हंस हंस देखूं, राखूं नैणां नेरा। निरखणकूं मोहि चाव घणेरो, कब देखूं मुख तेरा।। व्याकुल प्राण धरत नहिं धीरज, मिल तूं मीत सबेरा। मीरा के प्रभु गिरधर नागर ताप तपन बहुतेरा।।25।।

शब्दार्थ /अर्थ :- नैणा नेरा = आंखों के निकट। चाव = चाह। घणेरो =बहुत अधिक। सवेरा = जल्दी ही।

26. राग भैरवी


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मैं हरि बिन क्यों जिऊं री माइ।। पिव कारण बौरी भई, ज्यूं काठहि घुन खाइ।। ओखद मूल न संचरै, मोहि लाग्यो बौराइ।। कमठ दादुर बसत जल में जलहि ते उपजाइ। मीन जल के बीछुरे तन तलफि करि मरि जाइ।। पिव ढूंढण बन बन गई, कहुं मुरली धुनि पाइ। मीरा के प्रभु लाल गिरधर मिलि गये सुखदाइ।।26।।

शब्दार्थ /अर्थ :- ओषद = औषधि, दवा। संचरै =अमर करे। कमठ =कछुवा। धुनिपाइ =आवाज सुनकर।

27. धुन लावनी


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तुम्हरे कारण सब छोड्या, अब मोहि क्यूं तरसावौ हौ। बिरह-बिथा लागी उर अंतर, सो तुम आय बुझावौ हो।। अब छोड़त नहिं बड़ै प्रभुजी, हंसकर तुरत बुलावौ हौ। मीरा दासी जनम जनम की, अंग से अंग लगावौ हौ।।27।।

शब्दार्थ /अर्थ :- कारण =लिए, खातिर। छोड़त नहिं बड़ै = छोड़ने से काम नहीं चलेगा।

28. राग पीलू


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करुणा सुणो स्याम मेरी, मैं तो होय रही चेरी तेरी।। दरसण कारण भई बावरी बिरह-बिथा तन घेरी। तेरे कारण जोगण हूंगी, दूंगी नग्र बिच फेरी।। कुंज बन हेरी-हेरी।। अंग भभूत गले मृगछाला, यो तप भसम करूं री। अजहुं न मिल्या राम अबिनासी बन-बन बीच फिरूं री।। रोऊं नित टेरी-टेरी।। जन मीरा कूं गिरधर मिलिया दुख मेटण सुख भेरी। रूम रूम साता भइ उर में, मिट गई फेरा-फेरी।। रहूं चरननि तर चेरी।।28।।

शब्दार्थ /अर्थ :- बावरी =पगली। सुणी =सुनी। जोगण = योगिनी। नग्र बिच = नगर में भभूत =भस्म, राख। यो तन =यह शरीर। टेरि-टेरि = पुकार-पुकारकर सुख भरि = सुख देने वाले। रूम-रूम =रोम-रोम। साता =शांन्ति। फेरा-फेरी =आना-जाना, जनम-मरण।

29. राग सावनी कल्याण


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पपइया रे, पिव की वाणि न बोल। सुणि पावेली बिरहुणी रे, थारी रालेली पांख मरोड़।। चोंच कटाऊं पपइया रे, ऊपर कालोर लूण। पिव मेरा मैं पीव की रे, तू पिव कहै स कूण।। थारा सबद सुहावणा रे, जो पिव मेंला आज। चोंच मंढ़ाऊं थारी सोवनी रे, तू मेरे सिरताज।। प्रीतम कूं पतियां लिखूं रे, कागा तू ले जाय। जाइ प्रीतम जासूं यूं कहै रे, थांरि बिरहस धान न खाय।। मीरा दासी व्याकुल रे, पिव पिव करत बिहाय। बेगि मिलो प्रभु अंतरजामी, तुम विन रह्यौ न जाय।।29।।

शब्दार्थ /अर्थ :- पावेली =पायेगी। रालेली =तोड़ देगी। पांख =पंख कालोर लूण =काला नमक डालूंगी। कूण =कौन। मेला =मिलन। सोवनी =सोने से। धान =अन्न।

30. राग देस


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पिया मोहि दरसण दीजै हो। बेर बेर मैं टेरहूं, या किरपा कीजै हो।। जेठ महीने जल बिना पंछी दुख होई हो। मोर असाढ़ा कुरलहे घन चात्रा सोई हो।। सावण में झड़ लागियो, सखि तीजां खेलै हो। भादरवै नदियां वहै दूरी जिन मेलै हो।। सीप स्वाति ही झलती आसोजां सोई हो। देव काती में पूजहे मेरे तुम होई हो।। मंगसर ठंड बहोती पड़ै मोहि बेगि सम्हालो हो। पोस महीं पाला घणा,अबही तुम न्हालो हो।। महा महीं बसंत पंचमी फागां सब गावै हो। फागुण फागां खेलहैं बणराय जरावै हो। चैत चित्त में ऊपजी दरसण तुम दीजै हो। बैसाख बणराइ फूलवै कोमल कुरलीजै हो।। काग उड़ावत दिन गया बूझूं पंडित जोसी हो। मीरा बिरहण व्याकुली दरसण कद होसी हो।।30।।

शब्दार्थ /अर्थ :- टेरहूं =पुकारती हूं। पंछी =पक्षियों को। असाढ़ा =आषाढ़ में। कुरलहे =करुण शब्द बोलते हैं। घन = बादल। चात्रा =चातक। तीजां =सावन सुदी तीज का त्यौहार। भादरवै = भादों में। दूरी जिन मेलै हो =अलग न हो। आसोजां =क्वार मास में भी। देव =भगवान विष्णु काति = कार्तिक मासमें। मंगसर =अगहन मास में। बहोती = बहुत अधिक। पोष महि =पूष मास में। सम्हालो =सुध लो, देख लो, देख जाओ। महा-महि =माघ मास में वणराइ =जंगल। फूलवै = फूलती जाती है। कुरलीजै =करुण बोल बोलती है. काग उड़ावत =कौआ उड़ा-उड़ाकर। सकुन -विचारती है कि प्रीतम कब आयेंगे। जोसी =ज्योतिषी। होसी =होगा।

टिप्पणी :- बिरहिनी वर्ष के बारहों महीनों की विशेषताओं का वर्णन करती है। यह बारहमासी गीत है।

31. राग आनंद भैरों


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सखी, मेरी नींद नसानी हो। पिवको पंथ निहारत सिगरी रैण बिहानी हो।। सखिअन मिलकर सीख दई मन, एक न मानी हो। बिन देख्यां कल नाहिं पड़त जिय ऐसी ठानी हो।। अंग अंग व्याकुल भई मुख पिय पिय बानी हो। अंतरबेदन बिरह की कोई पीर न जानी हो।। ज्यूं चातक घनकूं रटै, मछली जिमि पानी हो। मीरा व्याकुल बिरहणी सुद बुध बिसरानी हो।।31।।

शब्दार्थ /अर्थ :- बेहानी = बीत गई। मानी =अच्छी लगी। वेदन = वेदना, व्यथा। बिसरानी = भूल गई।

32. राग कोसी


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म्हारी सुध ज्यूं जानो त्यूं लीजो।। पल पल ऊभी पंथ निहारूं, दरसण म्हाने दीजो। मैं तो हूं बहु औगुणवाली, औगण सब हर लीजो।। मैं तो दासी थारे चरण कंवलकी, मिल बिछड़न मत कीजो। मीरा के प्रभु गिरधर नागर, हरि चरणां चित दीजो।।32।।

शब्दार्थ /अर्थ :- ऊभी =खड़ी। म्हाने = मुझे। औगण =अवगुण, दोष। कंवल = कमल।

33. राग काफी


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घर आंगण न सुहावै, पिया बिन मोहि न भावै।। दीपक जोय कहा करूं सजनी, पिय परदेस रहावै। सूनी सेज जहर ज्यूं लागे, सिसक-सिसक जिय जावै।। नैण निंदरा नहीं आवै।। कदकी उभी मैं मग जोऊं, निस-दिन बिरह सतावै। कहा कहूं कछु कहत न आवै, हिवड़ो अति उकलावै।। हरि कब दरस दिखावै।। ऐसो है कोई परम सनेही, तुरत सनेसो लावै। वा बिरियां कद होसी मुझको, हरि हंस कंठ लगावै।। मीरा मिलि होरी गावै।।33।।

शब्दार्थ /अर्थ :- दीपक जोय = दीपक जलाकर। नैण =नयन। निंदरा =नींद। कदकी =कबकी। ऊभी =खड़ी। हिवड़ा = हृदय।अकलावै =व्याकुल हो रहा है। सनेसो = सन्देश। बिरियां = समय। होसी =होगी।

34. राग बरसाती


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बंसीवारा आज्यो म्हारे देस, थारी सांवरी सूरत व्हालो बेस।। आऊं आऊं कर गया सांवरा, कर गया कौल अनेक। गिणता गिणता घस गई म्हारी आंगलियां की रेख।। मैं बैरागिण आदिकी जी, थांरे म्हारे कदको सनेस। बिन पाणी बिन साबुण सांवरा, होय गई धोय सफेद।। जोगण होय जंगल सब हेरूं, तेरा नाम न पाया भेष। तेरी सूरत के कारणें, म्हें धर लिया भगवां भेष।। मोर मुगट पीतांबर सोहै, घूंघरवाला केस। मीरा के प्रभु गिरधर मिलियां, दूनो बढ़ै सनेस।।34।।

शब्दार्थ /अर्थ :-आज्यो =आना। म्हारे =मेरे। थारी =तुम्हारी। व्हालो =प्यारा। कौल =सौगन्ध। घस गई =घिस गई। आंगलियां =अंगुलियां। हेरूं =देखती फिरती हूं। म्हे = मैंने। सनेस = स्नेह, प्रेम।


35. राग पीलू


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साजन घर आओनी मीठा बोला।। कदकी ऊभी मैं पंथ निहारूं थारो, आयां होसी मेला।। आओ निसंक, संक मत मानो, आयां ही सुक्ख रहेला।। तन मन वार करूं न्यौछावर, दीज्यो स्याम मोय हेला।। आतुर बहुत बिलम मत कीज्यो, आयां हो रंग रहेला।। तुमरे कारण सब रंग त्याग्या, काजल तिलक तमोला।। तुम देख्या बिन कल न पड़त है, कर धर रही कपोला।। मीरा दासी जनम जनम की, दिल की घुंडी खोला।।35।।

शब्दार्थ /अर्थ :- ऊभी =खड़ी। आयां होसी मेला =आने से मिलन होगा। हेला =पुकार। रंग आनंद। तमोला = ताम्बूल, पान। कपोला = गाल पर। घुंडी = गांठ।

36. राग प्रभावती


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म्हारे जनम-मरण साथी थांने नहीं बिसरूं दिनराती।। थां देख्या बिन कल न पड़त है, जाणत मेरी छाती। ऊंची चढ़-चढ़ पंथ निहारूं रोय रोय अंखियां राती।। यो संसार सकल जग झूठो, झूठा कुलरा न्याती। दोउ कर जोड्यां अरज करूं छूं सुण लीज्यो मेरी बाती।। यो मन मेरो बड़ो हरामी ज्यूं मदमाती हाथी। सतगुर हस्त धर््यो सिर ऊपर आंकुस दै समझाती।। पल पल पिवको रूप निहारूं, निरख निरख सुख पाती। मीरा के प्रभु गिरधर नागर हरिचरणा चित राती।।36।।

शब्दार्थ /अर्थ :- थाने = तुमको। राती =लाल। जोड््यां =जोड़कर। हस्त =हाथ। राती = अनुराग।

37. राग प्रभाती


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थे तो पलक उघाड़ो दीनानाथ, मैं हाजिर-नाजिर कद की खड़ी।। साजणियां दुसमण होय बैठ्या, सबने लगूं कड़ी। तुम बिन साजन कोई नहिं है, डिगी नाव मेरी समंद अड़ी।। दिन नहिं चैन रैण नहीं निदरा, सूखूं खड़ी खड़ी। बाण बिरह का लग्या हिये में, भूलुं न एक घड़ी।। पत्थर की तो अहिल्या तारी बन के बीच पड़ी। कहा बोझ मीरा में करिये सौ पर एक धड़ी।।37।।

शब्दार्थ /अर्थ :- कड़ी = कड़वी। डिगी = डगमगा गई। समंद = समुद्र। निदरा = नींद। सौ पर एक धड़ी = कहां तो वजन सौ सेर का, और कहां पांच सेर का।

38. राग दरबारी-ताल तिताला


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तुम सुणौ दयाल म्हारी अरजी।। भवसागर में बही जात हौं, काढ़ो तो थारी मरजी। इण संसार सगो नहिं कोई, सांचा सगा रघुबरजी।। मात पिता औ कुटुम कबीलो सब मतलब के गरजी। मीरा की प्रभु अरजी सुण लो चरण लगाओ थारी मरजी।।38।।

शब्दार्थ :-म्हारी =मेरी। काढ़ो =निकाढ़ लो, निकाल ले। इण =यह। गरजी =स्वार्थी थारी =तुम्हारी।

39. राग बिहाग


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स्याम मोरी बांहड़ली जी गहो। या भवसागर मंझधार में थे ही निभावण हो।। म्हाने औगण घणा रहै प्रभुजी थे ही सहो तो सहो। मीरा के प्रभु हरि अबिनासी लाज बिरद की बहो।।39।।

शब्दार्थ /अर्थ :- थे =तुम। घणा छै = बहुत है। बहो = वहन करो, रखो। दर्शनानन्द -------------

40. राग पटमंजरी


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मैं तो सांवरे के रंग राची। साजि सिंगार बांधि पग घूंघरू, लोक-लाज तजि नाची।। गई कुमति, लई साधुकी संगति, भगत रूप भइ सांची। गाय गाय हरि के गुण निसदिन,कालव्यालसूं बांची।। उण बिन सब जग खारो लागत, और बात सब कांची। मीरा श्रीगिरधरन लालसूं, भगति रसीली जांची।।1।।

शब्दार्थ /अर्थ :- राची =रंग गई। उण =उस प्रियतम। खारो =कड़वा। रसीली =आनन्दमयी

41. राग त्रिवेनी


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(मेरे) नैना निपट बंकट छबि अटके।। देखत रूप मदनमोहनको पियत पियूख न मटके। बारिज भवां अलक टेढ़ी मनौ अति सुगंधरस अटके।। टेढ़ी कटि टेढ़ी कर मुरली टेढ़ी पाग लर लटके। मीरा प्रभु के रूप लुभानी गिरधर नागर नटके।।2।।

शब्दार्थ /अर्थ :- निपट =बिल्कुल। बंकट =टेढ़े, श्रीकृष्ण का एक नाम त्रिभंगी भी है अर्थात तीन टेढ़ों से खड़े हुए बांके बिहारी। पियूख =पीयूष, अमृत। भटके =फिरे। भवां = भौंह। अटके =उलझ गये। लर =मोतियों की लड़ी पर। लटकें =शोभित हो गये नटके =नटवर कृष्ण के।

42. राग गूजरी


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या मोहन के रूप लुभानी। सुंदर बदन कमलदल लोचन, बांकी चितवन मंद मुसकानी।। जमना के नीरे तीरे धेनु चरावै, बंसी में गावै मीठी बानी। तन मन धन गिरधर पर बारूं, चरणकंवल मीरा लपटानी।।3।।

शब्दार्थ /अर्थ :- दल =पंखुड़ी। बांकी =टेढ़ी। नीरे =निकट।

43. रागपीलू


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पग घुंघरू बांध मीरा नाची रे।। मैं तो मेरे नारायण की आपहि हो गइ दासी रे। लोग कहैं मीरा भई बावरी न्यात कहै कुलनासी रे।। विषका प्याला राणाजी भेज्या पीवत मीरा हांसी रे। मीरा के प्रभु गिरधर नागर सहज मिले अबिनासी रे।।4।।

शब्दार्थ /अर्थ :- आपहि =स्वयं ही। न्यात =सगे संबंधी। कुलनासी = कुल में दाग लगाने वाली। हांसी =प्रसन्न। सहज =आसानी से।

44. राग मांड


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माई री मैं तो लियो गोविन्दो मोल। कोई कहै छाने कोई कहै चौड़े, लियो री बजंता ढोल।। कोई कहै मुंहघो, कोई कहै सुंहघो, लियो री तराजू तोल। कोई कहै कालो, कोई कहै गोरो, लियो री अमोलक मोल।। कोई कहै घर में , कोई कहै बन में, राधा के संग किलोल। मीरा के प्रभु गिरधर नागर, आवत प्रेम के मोल।।5।।

शब्दार्थ /अर्थ :- माई =सखी। छाने =छिपकर। चौड़े =सबके सामने। बजंता ढोल =ढोल बजाकर प्रकट होकर। मुंहघो =महंगा। सुंहघो =सस्ता। अमोलक =अनमोल। आंखि खोल =ठीक तरह से देखभाल कर। किलोल =आनन्द, उल्लास।

45. राग तिलंग


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मन रे परसि हरिके चरण।। सुभग सीतल कंवल कोमल, त्रिबिध ज्वाला हरण। जिण चरण प्रहलाद परसे, इंद्र पदवी धरण।। जिण चरण ध्रुव अटल कीन्हें, राख अपनी सरण। जिण चरण ब्रह्मांड मेट्यो, नखसिखां सिरी धरण।। जिण चरण प्रभु परसि लीने, तरी गौतम घरण। जिण चरण कालीनाग नाथ्यो, गोप लीला करण।। जिण चरण गोबरधन धार््यो, गर्व मघवा हरण। दासि मीरा लाल गिरधर, अगम तारण तरण।।6।।

शभ्दार्थ :- त्रिविध ज्वाला =तीन प्रकार के दुःख; आध्यात्मिक, आधिदैविक,आधिभौतिक जिण =जिन। अटल =अचल। भेट्यो =व्याप्त कर लिया। गौतम-घरण =गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या। मघवा = इन्द्र। अगम ...तरण =अपार संसार-सागर से पार करानेवाले।

46. राग पीलू बरवा


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बड़े घर ताली लागी रे, म्हारां मन री उणारथ भागी रे।। छालरिये म्हारो चित नहीं रे, डाबरिये कुण जाव। गंगा जमना सूं काम नहीं रे, मैंतो जाय मिलूं दरियाव।। हाल्यां मोल्यांसूं काम नहीं रे, सीख नहीं सिरदार। कामदारासूं काम नहीं रे, मैं तो जाब करूं दरबार।। काच कथीरसूं काम नहीं रे, लोहा चढ़े सिर भार। सोना रूपासूं काम नहीं रे, म्हारे हीरांरो बौपार।। भाग हमारो जागियो रे, भयो समंद सूं सीर। अम्रित प्याला छांडिके, कुण पीवे कड़वो नीर।। पीपाकूं प्रभु परचो दियो रे, दीन्हा खजाना पूर। मीरा के प्रभु गिरघर नागर, धणी मिल्या छै हजूर।।7।।

शब्दार्थ /अर्थ :- ताली लागी =लगन लग गई। मन री =मन की। उणारथ =कामना। छीलरिये =छिछला गड्ढ़ा। डाबरिये =डबरा, पानी से भरा हुआ गड्ढा। कुण =कौन हाल्यां मोल्यां =नौकर-चाकर। कामदारां =अधिकारी। कथीर =रांगा। सीर =सम्बन्ध। जाब =जवाब, हाजिरी। कड़वो =खारा। रूपा =चांदी। पीपा =पीपा नाम का एक हरि भक्त। परिचौ =परिचय, चमत्कार। खजीन =खजाना। धणी = स्वामी।

47. राग झंझोटी


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मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई।। जाके सिर मोरमुगट मेरो पति सोई। तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई।। छांड़ि दई कुलकी कानि कहा करिहै कोई।। संतन ढिग बैठि बैठि लोकलाज खोई।। चुनरीके किये टूक ओढ़ लीन्हीं लोई। मोती मूंगे उतार बनमाला पोई।। अंसुवन जल सींचि-सींचि प्रेम-बेलि बोई। अब तो बेल फैल गई आणंद फल होई।। दूधकी मथनियां बड़े प्रेमसे बिलोई। माखन जब काढ़ि लियो छाछ पिये कोई।। भगति देखि राजी हुई जगत देखि रोई। दासी मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही।।8।।

शब्दार्थ /अर्थ :- कानि =मर्यादा, लोकलाज। अंसुवन जल = अश्रुरूपी जल से। आणद =आनन्दमय। फल =परिणाम। राजी =खुश। रोई =दुखी हुई।

48. राग अलैया


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तोसों लाग्यो नेह रे प्यारे नागर नंदकुमार। मुरली तेरी मन हर््यौ, बिसर््यौ घर ब्यौहार।। जबतैं श्रवननि धुनि परी, घर अंगणा न सुहाय। पारधि ज्यूं चूकै नहीं, म्रिगी बेधि दई आय।। पानी पीर न जानई ज्यों, मीन तड़फ मरि जाय। रसिक मधुपके मरमको नहीं, समुझत कमल सुभाय।। दीपकको जो दया नहिं, उड़ि-उड़ि मरत पतंग। मीरा प्रभु गिरधर मिले, जैसे पाणी मिलि गयौ रंग।।9।।

शब्दार्थ /अर्थ :- बिसर््यो =भूल गया। पारधि =शिकारी। म्रिगी =हिरणी। बेधी दइ = बाण बेध दिया। पीर =पीड़ा

49. राग सोरठ


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जोसीड़ा ने लाख बधाई रे अब घर आये स्याम।। आज आनंद उमंगि भयो है जीव लहै सुखधाम। पांच सखी मिलि पीव परसिकैं आनंद ठामूं ठाम।। बिसरि गयो दुख निरखि पियाकूं, सुफल मनोरथ काम। मीराके सुखसागर स्वामी भवन गवन कियो राम।।10।।

शब्दार्थ /अर्थ :- जोसीड़ा = ज्योतिषी। पांच सखी = पांच ज्ञानेन्द्रियों से आशय है। ठां =जगह। सुफल पूरी हुई। राम =प्रियतम, स्वामी से आशय है।

50. राग परज


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सहेलियां साजन घर आया हो। बहोत दिनांकी जोवती बिरहणि पिव पाया हो। रतन करूं नेवछावरी ले आरति साजूं हो। पिवका दिया सनेसड़ा ताहि बहोत निवाजूं हो।। पांच सखी इकठी भई मिलि मंगल गावै हो। पियाका रली बधावणा आणंद अंग न मावै हो।। हरि सागर सूं नेहरो नैणां बंध्या सनेह हो। मीरा सखी के आंगणै दूधां बूठा मेह हो।।11।।

शब्दार्थ /अर्थ :- साजन =प्रियतम। जोवती =बाट देखती। सनेसड़ा =सन्देश। रली बधावनां = आनन्द बधाई। नेहरो = स्नेह। बंध्या =फंस गये। दूधां =दूध की धारों से। बूठा = बरसे।

51. राघ बिलावल


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पियाजी म्हारे नैणां आगे रहज्यो जी।। नैणां आगे रहज्यो म्हारे, भूल मत जाज्यो जी। भौ-सागर में बही जात हूं, बेग म्हारी सुधि लीज्यो जी।। राणाजी भेज्या बिखका प्याला, सो इमरति कर दीज्यो जी। मीरा के प्रभु गिरधर नागर, मिल बिछुडन मत कीज्यो जी।।12।। शब्दार्थ /अर्थ :- नैणा =नयन, आंखें। बिख = विष, जहर। इमरित -अमृत।

52. राग कजरी


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म्हारा ओलगिया घर आया जी। तन की ताप मिटी सुख पाया, हिल मिल मंगल गाया जी।। घन की धुनि सुनि मोर मगन भया, यूं मेरे आनंद छाया जी। मग्न भई मिल प्रभु अपणा सूं, भौका दरद मिटाया जी।। चंद कूं निरखि कमोदणि फूलैं, हरषि भया मेरे काया जी। रग रग सीतल भई मेरी सजनी, हरि मेरे महल सिधायाजी।। सब भगतन का कारज कीन्हा, सोई प्रभु मैं पाया जी। मीरा बिरहणि सीतल होई दुख दंद दूर नसाया जी।।13।।

शब्दार्थ :-ओलगिया = परदेसी, प्रियतम। घन की धुनि =बादल की गरज। भौ का दरद =संसारी दुख। कमोदनि =कुमुदिनी। सिधाया =पधारा। दंद =द्वन्द्व, झगड़ा। नसाया = मेट दिया।

53. राग ललित


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हमारो प्रणाम बांकेबिहारी को। मोर मुकुट माथे तिलक बिराजे, कुंडल अलका कारी को।। अधर मधुर पर बंसी बजावै रीझ रिझावै राधा प्यारी को। यह छवि देख मगन भई मीरा, मोहन गिरधर -धारी को।।14।।

शब्दार्थ /अर्थ :- अलका कारी =काली अलकें। रिझावै =प्रसन्न करते हैं। प्रेमालाप -------------

54. राग सिंध भैरवी


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म्हांरे घर होता जाज्यो राज। अबके जिन टाला दे जाओ, सिर पर राखूं बिराज।। म्हे तो जनम जनम की दासी, थे म्हांका सिरताज। पावणडा म्हांके भलां ही पधार््या, सब ही सुधारण काज।। म्हे तो बुरी छां थांके भली छै, घण