मीरा भजनमाला
1. प्रभु कब रे मिलोगे .........................
प्रभु जी तुम दर्शन बिन मोय घड़ी चैन नहीं आवड़े।।टेक।। अन्न नहीं भावे नींद न आवे विरह सतावे मोय। घायल ज्यूं घूमूं खड़ी रे म्हारो दर्द न जाने कोय।।1।। दिन तो खाय गमायो री, रैन गमाई सोय। प्राण गंवाया झूरतां रे, नैन गंवाया दोनु रोय।।2।। जो मैं ऐसा जानती रे, प्रीत कियां दुख होय। नगर ढुंढेरौ पीटती रे, प्रीत न करियो कोय।।3।। पन्थ निहारूं डगर भुवारूं, ऊभी मारग जोय। मीरा के प्रभु कब रे मिलोगे, तुम मिलयां सुख होय।।4।।2. तुम बिन नैण दुखारा .........................
म्हारे घर आओ प्रीतम प्यारा।। तन मन धन सब भेंट धरूंगी भजन करूंगी तुम्हारा। म्हारे घर आओ प्रीतम प्यारा।। तुम गुणवंत सुसाहिब कहिये मोमें औगुण सारा।। म्हारे घर आओ प्रीतम प्यारा।। मैं निगुणी कछु गुण नहिं जानूं तुम सा बगसणहारा।। म्हारे घर आओ प्रीतम प्यारा।। मीरा कहै प्रभु कब रे मिलोगे तुम बिन नैण दुखारा।। म्हारे घर आओ प्रीतम प्यारा।।3. हरो जन की भीर .........................
हरि तुम हरो जन की भीर। द्रोपदी की लाज राखी, चट बढ़ायो चीर।। भगत कारण रूप नर हरि, धर््यो आप समीर।। हिरण्याकुस को मारि लीन्हो, धर््यो नाहिन धीर।। बूड़तो गजराज राख्यो, कियौ बाहर नीर।। दासी मीरा लाल गिरधर, चरणकंवल सीर।।4. म्हांरो अरजी .........................
तुम सुणो जी म्हांरो अरजी। भवसागर में बही जात हूं काढ़ो तो थांरी मरजी। इण संसार सगो नहिं कोई सांचा सगा रघुबरजी।। मात-पिता और कुटम कबीलो सब मतलब के गरजी। मीरा की प्रभु अरजी सुण लो चरण लगावो थांरी मरजी।।5. मेरो दरद न जाणै कोय .........................
हे री मैं तो प्रेम-दिवानी मेरो दरद न जाणै कोय। घायल की गति घायल जाणै, जो कोई घायल होय। जौहरि की गति जौहरी जाणै, की जिन जौहर होय। सूली ऊपर सेज हमारी, सोवण किस बिध होय। गगन मंडल पर सेज पिया की किस बिध मिलणा होय। दरद की मारी बन-बन डोलूं बैद मिल्या नहिं कोय। मीरा की प्रभु पीर मिटेगी, जद बैद सांवरिया होय।6. राखौ कृपानिधान .........................
अब मैं सरण तिहारी जी, मोहि राखौ कृपा निधान। अजामील अपराधी तारे, तारे नीच सदान। जल डूबत गजराज उबारे, गणिका चढ़ी बिमान। और अधम तारे बहुतेरे, भाखत संत सुजान। कुबजा नीच भीलणी तारी, जाणे सकल जहान। कहं लग कहूं गिणत नहिं आवै, थकि रहे बेद पुरान। मीरा दासी शरण तिहारी, सुनिये दोनों कान।7. कोई कहियौ रे .........................
कोई कहियौ रे प्रभु आवनकी, आवनकी मनभावन की। आप न आवै लिख नहिं भेजै , बाण पड़ी ललचावनकी। ए दोउ नैण कह्यो नहिं मानै, नदियां बहै जैसे सावन की। कहा करूं कछु नहिं बस मेरो, पांख नहीं उड़ जावनकी। मीरा कहै प्रभु कब रे मिलोगे, चेरी भइ हूं तेरे दांवनकी।8. दूखण लागे नैन .........................
दरस बिन दूखण लागे नैन। जबसे तुम बिछुड़े प्रभु मोरे, कबहुं न पायो चैन। सबद सुणत मेरी छतियां, कांपै मीठे लागै बैन। बिरह व्यथा कांसू कहूं सजनी, बह गई करवत ऐन। कल न परत पल हरि मग जोवत, भई छमासी रैन। मीरा के प्रभु कब रे मिलोगे, दुख मेटण सुख देन।9. कल नाहिं पड़त जिस .........................
सखी मेरी नींद नसानी हो। पिवको पंथ निहारत सिगरी, रैण बिहानी हो। सखियन मिलकर सीख दई मन, एक न मानी हो। बिन देख्यां कल नाहिं पड़त जिय, ऐसी ठानी हो। अंग-अंग ब्याकुल भई मुख, पिय पिय बानी हो। अंतर बेदन बिरहकी कोई, पीर न जानी हो। ज्यूं चातक घनकूं रटै, मछली जिमि पानी हो। मीरा ब्याकुल बिरहणी, सुध बुध बिसरानी हो।10. आय मिलौ मोहि .........................
राम मिलण के काज सखी, मेरे आरति उर में जागी री। तड़पत-तड़पत कल न परत है, बिरहबाण उर लागी री। निसदिन पंथ निहारूं पिवको, पलक न पल भर लागी री। पीव-पीव मैं रटूं रात-दिन, दूजी सुध-बुध भागी री। बिरह भुजंग मेरो डस्यो कलेजो, लहर हलाहल जागी री। मेरी आरति मेटि गोसाईं, आय मिलौ मोहि सागी री। मीरा ब्याकुल अति उकलाणी, पिया की उमंग अति लागी री।11. लोक-लाज तजि नाची .........................
मैं तो सांवरे के रंग राची। साजि सिंगार बांधि पग घुंघरू, लोक-लाज तजि नाची।। गई कुमति, लई साधुकी संगति, भगत, रूप भइ सांची। गाय गाय हरिके गुण निस दिन, कालब्यालसूं बांची।। उण बिन सब जग खारो लागत, और बात सब कांची। मीरा श्रीगिरधरन लालसूं, भगति रसीली जांची।।12. मैं बैरागण हूंगी .........................
बाला मैं बैरागण हूंगी। जिन भेषां म्हारो साहिब रीझे, सोही भेष धरूंगी। सील संतोष धरूं घट भीतर, समता पकड़ रहूंगी। जाको नाम निरंजन कहिये, ताको ध्यान धरूंगी। गुरुके ग्यान रंगू तन कपड़ा, मन मुद्रा पैरूंगी। प्रेम पीतसूं हरिगुण गाऊं, चरणन लिपट रहूंगी। या तन की मैं करूं कीगरी, रसना नाम कहूंगी। मीरा के प्रभु गिरधर नागर, साधां संग रहूंगी।13.बसो मोरे नैनन में .........................
बसो मोरे नैनन में नंदलाल। मोहनी मूरति सांवरि सूरति, नैणा बने बिसाल। अधर सुधारस मुरली राजत, उर बैजंती-माल।। छुद्र घंटिका कटि तट सोभित, नूपुर सबद रसाल। मीरा प्रभु संतन सुखदाई, भगत बछल गोपाल।।14. मोरे ललन .........................
जागो बंसीवारे जागो मोरे ललन। रजनी बीती भोर भयो है घर घर खुले किवारे। जागो बंसीवारे जागो मोरे ललन।। गोपी दही मथत सुनियत है कंगना के झनकारे। जागो बंसीवारे जागो मोरे ललन।। उठो लालजी भोर भयो है सुर नर ठाढ़े द्वारे। जागो बंसीवारे जागो मोरे ललन। ग्वाल बाल सब करत कुलाहल जय जय सबद उचारे। जागो बंसीवारे जागो मोरे ललन। मीरा के प्रभु गिरधर नागर शरण आयाकूं तारे।। जागो बंसीवारे जागो मोरे ललन।।15. चितवौ जी मोरी ओर .........................
तनक हरि चितवौ जी मोरी ओर। हम चितवत तुम चितवत नाहीं मन के बड़े कठोर। मेरे आसा चितनि तुम्हरी और न दूजी ठौर। तुमसे हमकूं एक हो जी हम-सी लाख करोर।। कब की ठाड़ी अरज करत हूं अरज करत भइ भोर। मीरा के प्रभु हरि अबिनासी देस्यूं प्राण अकोर।।16. प्राण अधार .........................
हरि मेरे जीवन प्राण अधार। और आसरो नांही तुम बिन, तीनूं लोक मंझार।। हरि मेरे जीवन प्राण अधार आपबिना मोहि कछु न सुहावै निरख्यौ सब संसार। हरि मेरे जीवन प्राण अधार मीरा कहैं मैं दासि रावरी, दीज्यो मती बिसार।। हरि मेरे जीवन प्राण अधार17. दूसरो न कोई .........................
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई।। जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई। तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई।। छांडि दई कुलकी कानि कहा करिहै कोई। संतन ढिग बैठि बैठि लोकलाज खोई।। चुनरी के किये टूक ओढ़ लीन्ही लोई। मोती मूंगे उतार बनमाला पोई।। अंसुवन जल सीचि सीचि प्रेम बेलि बोई। अब तो बेल फैल गई आंणद फल होई।। दूध की मथनियां बड़े प्रेम से बिलोई। माखन जब काढ़ि लियो छाछ पिये कोई।। भगति देखि राजी हुई जगत देखि रोई। दासी मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही।।18. म्हारे घर .........................
म्हारे घर होता जाज्यो राज। अबके जिन टाला दे जाओ सिर पर राखूं बिराज।। म्हे तो जनम जनमकी दासी थे म्हांका सिरताज। पावणड़ा म्हांके भलां ही पधारया सब ही सुघारण काज।। म्हे तो बुरी छां थांके भली छै घणेरी तुम हो एक रसराज। थांने हम सब ही की चिंता (तुम) सबके हो गरीब निवाज।। सबके मुकुट-सिरोमणि सिर पर मानो पुन्य की पाज। मीराके प्रभु गिरधर नागर बांह गहे की लाज।।19. मैं अरज करूं .........................
प्रभुजी मैं अरज करुं छूं म्हारो बेड़ो लगाज्यो पार।। इण भव में मैं दुख बहु पायो संसा-सोग निवार। अष्ट करम की तलब लगी है दूर करो दुख-भार।। यों संसार सब बह्यो जात है लख चौरासी री धार। मीरा के प्रभु गिरधर नागर आवागमन निवार।।20. प्रभु, कबरे मिलोगे .........................
प्रभुजी थे कहां गया, नेहड़ो लगाय। छोड़ गया बिस्वास संगाती प्रेम की बाती बलाय।। बिरह समंद में छोड़ गया छो हकी नाव चलाय। मीरा के प्रभु कब रे मिलोगे तुम बिन रह्यो न जाय।।21. मीरा दासी जनम जनम की .........................
प्यारे दरसन दीज्यो आय, तुम बिन रह्यो न जाय।। जल बिन कमल, चंद बिन रजनी, ऐसे तुम देख्यां बिन सजनी। आकुल व्याकुल फिरूं रैन दिन, बिरह कालजो खाय।। दिवस न भूख, नींद नहिं रैना, मुख सूं कथत न आवे बैना। कहा कहूं कछु कहत न आवै, मिलकर तपत बुझाय।। क्यूं तरसावो अन्तरजामी, आय मिलो किरपाकर स्वामी। मीरा दासी जनम-जनम की, पड़ी तुम्हारे पाय।।22.आली रे! .........................
आली रे मेरे नैणा बाण पड़ी। चित्त चढ़ो मेरे माधुरी मूरत उर बिच आन अड़ी। कब की ठाढ़ी पंथ निहारूं अपने भवन खड़ी।। कैसे प्राण पिया बिन राखूं जीवन मूल जड़ी। मीरा गिरधर हाथ बिकानी लोग कहै बिगड़ी।।23. प्रभु गिरधर नागर .........................
बरसै बदरिया सावन की सावन की मनभावन की। सावन में उमग्यो मेरो मनवा भनक सुनी हरि आवन की। उमड़ घुमड़ चहुं दिसि से आयो दामण दमके झर लावन की। नान्हीं नान्हीं बूंदन मेहा बरसै सीतल पवन सोहावन की। मीराके प्रभु गिरधर नागर आनंद मंगल गावन की।24. राख अपनी सरण .........................
मन रे परसि हरिके चरण। सुभग सीतल कंवल कोमल,त्रिविध ज्वाला हरण। जिण चरण प्रहलाद परसे, इंद्र पदवी धरण।। जिण चरण ध्रुव अटल कीन्हे, राख अपनी सरण। जिण चरण ब्रह्मांड भेटयो, नखसिखां सिर धरण।। जिण चरण प्रभु परसि लीने, तेरी गोतम घरण। जिण चरण कालीनाग नाथ्यो, गोप लीला-करण।। जिण चरण गोबरधन धार््यो, गर्व मघवा हरण। दासि मीरा लाल गिरधर, अगम तारण तरण।।25. पग घुंघरू बांध .........................
पग घुंघरूं बांध मीरा नाची रे।। मैं तो मेरे नारायण की, आपहि हो गइ दासी रे। पग घुंघरूं बांध मीरा नाची रे। लोग कहै मीरा भई बावरी न्यात कहै कुलनासी रे। पग घुंघरूं बांध मीरा नाची रे। बिष का प्याला राणाजी भेज्या पीवत मीरा हाँसी रे। पग घुंघरूं बांध मीरा नाची रे। मीरा के प्रभु गिरधर नागर सहज मिले अबिनासी रे। पग घुंघरूं बांध मीरा नाची रे।26. आज्यो म्हारे देस .........................
बंसीवारा आज्यो म्हारे देस। सांवरी सुरत वारी बेस।। आऊं-आऊं कर गया जी, कर गया कौल अनेक। गिणता-गिणता घस गई म्हारी आंगलिया री रेख।। मैं बैरागिण आदिकी जी थांरे म्हारे कदको सनेस। बिन पाणी बिन साबुण जी, होय गई धोय सफेद।। जोगण होय जंगल सब हेरूं छोड़ा ना कुछ सैस। तेरी सुरत के कारणे जी म्हे धर लिया भगवां भेस।। मोर-मुकुट पीताम्बर सोहै घूंघरवाला केस। मीरा के प्रभु गिरधर मिलियां दूनो बढ़ै सनेस।।27.कबहुं मिलै पिया मेरा .........................
गोबिन्द कबहुं मिलै पिया मेरा। चरण-कंवल को हंस-हंस देखू राखूं नैणां नेरा। गोबिंद कबहुं मिलै पिया मेरा। निरखणकूं मोहि चाव घणेरो कब देखूं मुख तेरा। गोबिंद कबहुं मिलै पिया मेरा। ब्याकुल प्राण धरे नहिं धीरज मिल तूं मीत सबेरा। गोबिंद कबहुं मिलै पिया मेरा। मीरा के प्रभु गिरधर नागर ताप तपन बहुतेरा। गोबिंद कबहुं मिलै पिया मेरा।28. कीजो प्रीत खरी .........................
बादल देख डरी हो, स्याम! मैं बादल देख डरी। श्याम मैं बादल देख डरी। काली-पीली घटा ऊमड़ी बरस्यो एक घरी। श्याम मैं बादल देख डरी। जित जाऊं तित पाणी पाणी हुई भोम हरी।। जाका पिय परदेस बसत है भीजूं बाहर खरी। श्याम मैं बादल देख डरी। मीरा के प्रभु हरि अबिनासी कीजो प्रीत खरी। श्याम मैं बादल देख डरी।29. मीरा के प्रभु गिरधर नागर .........................
गली तो चारों बंद हुई हैं, मैं हरिसे मिलूं कैसे जाय।। ऊंची-नीची राह रपटली, पांव नहीं ठहराय। सोच सोच पग धरूं जतन से, बार-बार डिग जाय।। ऊंचा नीचां महल पिया का म्हांसूं चढ्यो न जाय। पिया दूर पथ म्हारो झीणो, सुरत झकोला खाय।। कोस कोस पर पहरा बैठया, पैग पैग बटमार। हे बिधना कैसी रच दीनी दूर बसायो लाय।। मीरा के प्रभु गिरधर नागर सतगुरु दई बताय। जुगन-जुगन से बिछड़ी मीरा घर में लीनी लाय।।30. शरण गही प्रभु तेरी .........................
सुण लीजो बिनती मोरी, मैं शरण गही प्रभु तेरी। तुम(तो) पतित अनेक उधारे, भव सागर से तारे।। मैं सबका तो नाम न जानूं कोइ कोई नाम उचारे। अम्बरीष सुदामा नामा, तुम पहुंचाये निज धामा। ध्रुव जो पांच वर्ष के बालक, तुम दरस दिये घनस्यामा। धना भक्त का खेत जमाया, कबिरा का बैल चराया।। सबरी का जूंठा फल खाया, तुम काज किये मन भाया। सदना औ सेना नाईको तुम कीन्हा अपनाई।। करमा की खिचड़ी खाई तुम गणिका पार लगाई। मीरा प्रभु तुमरे रंग राती या जानत सब दुनियाई।।31. प्रभु किरपा कीजौ .........................
स्वामी सब संसार के हो सांचे श्रीभगवान।। स्थावर जंगम पावक पाणी धरती बीज समान। सबमें महिमा थांरी देखी कुदरत के कुरबान।। बिप्र सुदामा को दालद खोयो बाले की पहचान। दो मुट्ठी तंदुलकी चाबी दीन्हयों द्रव्य महान। भारत में अर्जुन के आगे आप भया रथवान। अर्जुन कुलका लोग निहार््या छुट गया तीर कमान। ना कोई मारे ना कोइ मरतो, तेरो यो अग्यान। चेतन जीव तो अजर अमर है, यो गीतारों ग्यान।। मेरे पर प्रभु किरपा कीजौ, बांदी अपणी जान। मीरा के प्रभु गिरधर नागर चरण कंवल में ध्यान।।32. सखी री .........................
हे मेरो मनमोहना आयो नहीं सखी री। कैं कहुं काज किया संतन का। कैं कहुं गैल भुलावना।। हे मेरो मनमोहना। कहा करूं कित जाऊं मेरी सजनी। लाग्यो है बिरह सतावना।। हे मेरो मनमोहना।। मीरा दासी दरसण प्यासी। हरि-चरणां चित लावना।। हे मेरो मनमोहना।।33. पपइया रे! .........................
पपइया रे पिवकी बाणि न बोल। सुणि पावेली बिरहणी रे थारी रालेली पांख मरोड़।। चांच कटाऊं पपइया रे ऊपर कालोर लूण। पिव मेरा मैं पिव की रे तू पिव कहै स कूण।। थारा सबद सुहावणा रे जो पिव मेला आज। चांच मंढ़ाऊं थारी सोवनी रे तू मेरे सिरताज।। प्रीतम कूं पतियां लिखूं रे कागा तूं ले जाय। जाइ प्रीतम जासूं यूं कहै रे थांरि बिरहण धान न खाय।। मीरा दासी ब्याकुली रे पिव-पिव करत बिहाय। बेगि मिलो प्रभु अंतरजामी तुम बिनु रह्यौ न जाय।।34. होरी खेलत हैं गिरधारी .........................
होरी खेलत हैं गिरधारी। मुरली चंग बजत डफ न्यारो। संग जुबती ब्रजनारी।। चंदन केसर छिड़कत मोहन अपने हाथ बिहारी। भरि भरि मूठ गुलाल लाल संग स्यामा प्राण पियारी। गावत चार धमार राग तहं दै दै कल करतारी।। फाग जु खेलत रसिक सांवरो बाढ्यौ रस ब्रज भारी। मीराकूं प्रभु गिरधर मिलिया मोहनलाल बिहारी।।35. साजन घर आया हो .........................
सहेलियां साजन घर आया हो। बहोत दिनां की जोवती बिरहिण पिव पाया हो।। रतन करूं नेवछावरी ले आरति साजूं हो। पिवका दिया सनेसड़ा ताहि बहोत निवाजूं हो।। पांच सखी इकठी भई मिलि मंगल गावै हो। पिया का रली बधावणा आणंद अंग न मावै हो। हरि सागर सूं नेहरो नैणां बंध्या सनेह हो। मरा सखी के आगणै दूधां बूठा मेह हो।।36. चाकर राखो जी .........................
स्याम! मने चाकर राखो जी गिरधारी लाला! चाकर राखो जी। चाकर रहसूं बाग लगासूं नित उठ दरसण पासूं। बिंद्राबन की कुंजगलिन में तेरी लीला गासूं।। चाकरी में दरसण पाऊं सुमिरण पाऊं खरची। भाव भगति जागीरी पाऊं, तीनूं बाता सरसी।। मोर मुकुट पीतांबर सोहै, गल बैजंती माला। बिंद्राबन में धेनु चरावे मोहन मुरलीवाला।। हरे हरे नित बाग लगाऊं, बिच बिच राखूं क्यारी। सांवरिया के दरसण पाऊं, पहर कुसुम्मी सारी। जोगी आया जोग करणकूं, तप करणे संन्यासी। हरी भजनकूं साधू आया बिंद्राबन के बासी।। मीरा के प्रभु गहिर गंभीरा सदा रहो जी धीरा। आधी रात प्रभु दरसन दीन्हें, प्रेमनदी के तीरा।।37. सांचो प्रीतम .........................
मैं गिरधर के घर जाऊं। गिरधर म्हांरो सांचो प्रीतम देखत रूप लुभाऊं।। रैण पड़ै तबही उठ जाऊं भोर भये उठि आऊं। रैन दिना वाके संग खेलूं ज्यूं त्यूं ताहि रिझाऊं।। जो पहिरावै सोई पहिरूं जो दे सोई खाऊं। मेरी उणकी प्रीति पुराणी उण बिन पल न रहाऊं। जहां बैठावें तितही बैठूं बेचै तो बिक जाऊं। मीरा के प्रभु गिरधर नागर बार बार बलि जाऊं।।38. सुभ है आज घरी .........................
तेरो कोई नहिं रोकणहार, मगन होइ मीरा चली।। लाज सरम कुल की मरजादा, सिरसै दूर करी। मान-अपमान दोऊ धर पटके, निकसी ग्यान गली।। ऊंची अटरिया लाल किंवड़िया, निरगुण-सेज बिछी। पंचरंगी झालर सुभ सोहै, फूलन फूल कली। बाजूबंद कडूला सोहै, सिंदूर मांग भरी। सुमिरण थाल हाथ में लीन्हों, सौभा अधिक खरी।। सेज सुखमणा मीरा सौहै, सुभ है आज घरी। तुम जाओ राणा घर अपणे, मेरी थांरी नांहि सरी।।39. म्हारो कांई करसी .........................
राणोजी रूठे तो म्हारो कांई करसी, म्हे तो गोविन्दरा गुण गास्यां हे माय।। राणोजी रूठे तो अपने देश रखासी, म्हे तो हरि रूठ्यां रूठे जास्यां हे माय। लोक-लाजकी काण न राखां, म्हे तो निर्भय निशान गुरास्यां हे माय। राम नाम की जहाज चलास्यां, म्हे तो भवसागर तिर जास्यां हे माय। हरिमंदिर में निरत करास्यां, म्हे तो घूघरिया छमकास्यां हे माय। चरणामृत को नेम हमारो, म्हे तो नित उठ दर्शण जास्यां हे माय। मीरा गिरधर शरण सांवल के, म्हे ते चरण-कमल लिपरास्यां हे माय।40. राम रतन धन पायो .........................
पायो जी म्हे तो राम रतन धन पायो।। टेक।। वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु, किरपा कर अपनायो।। जनम जनम की पूंजी पाई, जग में सभी खोवायो।। खायो न खरच चोर न लेवे, दिन-दिन बढ़त सवायो।। सत की नाव खेवटिया सतगुरु, भवसागर तर आयो।। `मीरा' के प्रभु गिरधर नागर, हरस हरस जश गायो।।41. भजन बिना नर फीको .........................
आज मोहिं लागे वृन्दावन नीको।। घर-घर तुलसी ठाकुर सेवा, दरसन गोविन्द जी को।।1।। निरमल नीर बहत जमुना में, भोजन दूध दही को। रतन सिंघासण आपु बिराजैं, मुकुट धर््यो तुलसी को।।2।। कुंजन कुंजन फिरत राधिका, सबद सुणत मुरली को। `मीरा' के प्रभु गिरधर नागर, भजन बिना नर फीको।।3।।42. तुमरे दरस बिन बावरी .........................
दूर नगरी, बड़ी दूर नगरी-नगरी कैसे आऊं मैं तेरी गोकुल नगरी दूर नगरी बड़ी दूर नगरी रात को आऊं कान्हा डर माही लागे, दिन को आऊं तो देखे सारी नगरी। दूर नगरी... सखी संग आऊं कान्हा शर्म मोहे लागे, अकेली आऊं तो भूल जाऊं तेरी डगरी। दूर नगरी..... धीरे-धीरे चलूं तो कमर मोरी लचके झटपट चलूं तो छलकाए गगरी। दूर नगरी.... मीरा कहे प्रभु गिरधर नागर, तुमरे दरस बिन मैं तो हो गई बावरी। दूर नगरी....43. भजो रे मन गोविन्दा .........................
नटवर नागर नन्दा, भजो रे मन गोविन्दा, श्याम सुन्दर मुख चन्दा, भजो रे मन गोविन्दा। तू ही नटवर, तू ही नागर, तू ही बाल मुकुन्दा , सब देवन में कृष्ण बड़े हैं, ज्यूं तारा बिच चंदा। सब सखियन में राधा जी बड़ी हैं, ज्यूं नदियन बिच गंगा, ध्रुव तारे, प्रहलाद उबारे, नरसिंह रूप धरता। कालीदह में नाग ज्यों नाथो, फण-फण निरत करता ; वृन्दावन में रास रचायो, नाचत बाल मुकुन्दा। मीरा के प्रभु गिरधर नागर, काटो जम का फंदा।।44. लाज राखो महाराज .........................
अब तो निभायां सरेगी बांह गहे की लाज। समरथ शरण तुम्हारी सइयां सरब सुधारण काज।। भवसागर संसार अपरबल जामे तुम हो जहाज। गिरधारां आधार जगत गुरु तुम बिन होय अकाज।। जुग जुग भीर हरी भगतन की दीनी मोक्ष समाज। `मीरा' शरण गही चरणन की लाज रखो महाराज।।45. म्हारो प्रणाम .........................
म्हारो प्रणाम बांकेबिहारीको। मोर मुकुट माथे तिलक बिराजे। कुण्डल अलका कारीको म्हारो प्रणाम अधर मधुर कर बंसी बजावै। रीझ रीझौ राधाप्यारीको म्हारो प्रणाम यह छबि देख मगन भई मीरा। मोहन गिरवरधारीको म्हारो प्रणाम46. मीरा की विनती छै जी .........................
दरस म्हारे बेगि दीज्यो जी ! ओ जी! अन्तरजामी ओ राम ! खबर म्हारी बेगि लीज्यो जी आप बिन मोहे कल ना पडत है जी ! ओजी! तडपत हूं दिन रैन रैन में नीर ढले है जी गुण तो प्रभुजी मों में एक नहीं छै जी ! ओ जी अवगुण भरे हैं अनेक, अवगुण म्हारां माफ करीज्यो जी भगत बछल प्रभु बिड़द कहाये जी ! ओ जी! भगतन के प्रतिपाल, सहाय आज म्हांरी बेगि करीज्यो जी दासी मीरा की विनती छै जी ! ओजी! आदि अन्त की ओ लाज , आज म्हारी राख लीज्यो जी! : इति :