राग बिलावल


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आजु गृह नंद महर कैं बधाइ ।


प्रात समय मोहन मुख निरखत, कोटि चंद-छबि पाइ ॥


मिलि ब्रज-नागरि मंगल गावतिं, नंद-भवन मैं आइ ।


देतिं असीस, जियौ जसुदा-सुत कोटिनि बरष कन्हाइ ॥


अति आनंद बढ्यौ गोकुल मैं, उपमा कही न जाइ ।


सूरदास धनि नँद की घरनी, देखत नैन सिराइ ॥


भावार्थ / अर्थ :-- आज व्रजराज श्रीनन्दजी के यहाँ बधाई बज रही है । करोड़ों चन्द्रमा के समान सुशोभित मोहन का मुख प्रातःकाल ही उन्होंने देखा है । व्रज-नागरिकाएँ एकत्र होकर नन्दभवन में आकर मंगलगान कर रही हैं । वे आशीर्वाद देती हैं--'यशोदा रानी का पुत्र कन्हाई करोड़ों वर्ष जीवे ।' गोकुलमें अत्यन्त आनन्द उमड़ा है,उसकी उपमा वर्णन नहीं किया जा सकता । सूरदासजी कहते हैं कि नन्दपत्नी धन्य हैं, उनके दर्शन करके ही नेत्र शीतल हो जाते हैं ।